कहा सुना जा रहा है कि इन दिनों ब्लॉगिंग में न सिर्फ़ पोस्ट लिखने की बल्कि , पढने की और जाहिर है कि पोस्ट पर टिप्पणियों की रफ़्तार भी बेहद कम होती जा रही है , हमने पडताल की , कि क्या सचमुच ही ऐसा हो रहा है , लेकिन नहीं जी । कौन कहता है , आइए दिखाते हैं आपको , हाथ कंगन को आरसी क्या ………
पूजा आजकल अपने ब्लॉग पर लहरों का तूफ़ान उठाए हैं , कमाल की बिंदास शैली और दिलचस्प विषय । इस पोस्ट पर उन्होंने , अपनी ताज़ा ताज़ा हेयरकट को विषय बनाते हुए जब लिखा तो देखिए क्या कहा सबने
हा हा आहा अरे पूजा गज़ब ढा रही हो यार ... कित्ती बार कहा है ऐसी पिक्चर पोस्ट न किया करो बाबु... दिल बैठ जाता है हमारा :PPP ..... दुनिया के सारे पति एक्से ही होते हैं बच्चा........ बस पत्नियाँ अलग-अलग... छोटे,लम्बे bob कट बालों वाली.... हम्म वीकेंड में जब इक ठौ गज्ज़ब का पोस्ट मिल जाये तब कौन कमबख्त उसे नज़रंदाज़ कर सकता है.. और उस पर तुम्हारा लिखा.... हाह्ह्ह्हह्ह अब कैसे लिख कर बतायें की कित्तनी लम्बी सांस भरी है हमने तुम्हारी इस पोस्टवा पर
हम कहां पीछे रहने वाले थे ...
अजय कुमार झाMay 4, 2012 09:08 PM
ई कटिंगवा तो ठीके है मुदा ई घेंट टेढा करके तरघुइयां लुक देके ई एक आखं देखाने वाला चलचित्तर कौन हिंचिस है जी । पोस्टवा त चौचक हईये है । ...फ़ेसबुक पर लईले जा रहे हैं । का कहे ..वीक एंड पर ...अजी वीक एंडवे पर जादे पढा जाता है ...ई इंडिया है बाबू ...आते हैं फ़िन से पलटी मार के
जब अवधिया जी ने पूछा
चैटिंग - एक सजा या मजा
तो जवाब आया
प्रवीण पाण्डेय said...
ब्लैक होल है, समय भी नहीं निकल पाता है यहाँ से।
जब रचना जी ने नारी ब्लॉग पर कहा कि
इस उड़ान को अब रोकना संभव नहीं हैं .
तो इस पर आई प्रतिक्रिया देखिए
सौदी अरब में भी ६० प्रतिशत से अधिक उच्च शिक्षा की छात्र महिलाएं ही हैं.
और बंगलौर के कई कॉलेज में लडको के लिए कट ऑफ लड़कियों से कम हैं, क्योंकि लड़कियां हर साल ज्यादा अंक ला रही हैं, इससे बहुत सी कम आय वाले वर्गों की छात्राओं को शायद दाखिला न मिल पता हो, चाहे उन्होंने घर का काम करते करते, सड़क पर यौन शोषण झेलते झेलते लड़कों से अधिक अंक पाए हों.
कब तक कर सकेगे ? २ साल से टॉप पर आईएस मे लडकियां हैं . सिस्टम बदल देगे धीरे धीरे वो जैसे जी टीवी पर पतंग उडाती लडकिया आती हैं लिंक खोजती हूँ
छत्तीसगढ के कलेक्टर जब नक्सलवादियों के चंगुल से छूटे तो प्रतिक्रिया ऐसी हुई
‘यार, ये एलेक्स तो बड़ा मतलबी निकला...!’
देखिए कि इस पर पाठकों ने क्या कहा
जान बची तो लाख उपाया, लौट कलेक्टर घर को आये |
अहमद किशन बड़े अहमक थे, बिन मतलब के जान गँवाए |
इलेक्स रिलेक्सिंग बंगले में अब, नक्सल बैठे घात लगाए -
किसको फुरसत है साहब जी, मौत पे उनके अश्रु बहाए ||
बेमतलब है नीति नियम सब, नीयत में ही खोट दिखाए |
एक तरफ है ढोल नगाड़े, दूजी तरफ मर्सिया गाये |
अहमद किशन शहीद हुए पर, सरकार पुन: छलनी कर जाए |
उनके दो परिवार दुखी हैं, इन गदहों को कौन बताये ||
अतुल जी मैं आपसे कतई सहमत नहीं, यह सच है कि शहीद जवानो के परिजनो ंकी संवेदना को समझना चाहिए पर इसके लिए एलेक्स मेनन का दोष कहां है। आप भी जानते है और मैं भी कि यह सब पटाखे बाजी मीडिया के लिए न्यूज बनाने वाले हम और आप ही होते है और मेनन को बात नहीं करना उनका सदमे में होना भी हो सकता है, इतनी जल्दी कोई कौसे मौत की आगोश से लौटने के बाद उबर सकता है..
शुकुल जी एक ठो नयका उलझन का मनोविज्ञान पर थीसिस लिख डाले जैसे ही
ये बात तो एकदम सही है , घूस देने वाले के धर्म संकट के बारे में कोई सोचता ही नहीं
आजकल तो ऑनलाइन टिकट बुक कराने पर कन्विनियेंस चार्ज लगता है , हिंदी में इसे ही सुविधा शुल्क कहते हैं | अब सब ओफिसिअल मामला हो गया है |
घूस की महत्ता का वर्णन काका हाथरसी ने भी किया है :
कूटनीत मंथन करी , प्राप्त हुआ ये ज्ञान |
लोहे से लोहा कटे, यह सिद्धांत प्रमान |
ये सिद्धांत प्रमान , ज़हर से ज़हर मारिये |
काँटा लग जाये कांटे से ही निकालिए |
कह काका कवि काप रहा क्यूँ रिश्वत लेकर |
रिश्वत पकड़ी जाए छूट जा रिश्वत देकर |रिश्वत की महिमा अपरमपार है |
लगता है पिछलका दिन बाल कटाई दिन था उधर पूजा अपना हेयर इश्टाईल पे लिख रही थी त इधर बिबेक बाबू , बोले तो विवेक रस्तोगी जी ..बाल कटवाने की कवायद ठेल रहे थे , इस पर मिसर जी टीपे
आप भी न फुटेज बहुत खाते है ... अब यह भी कोनो बात हुआ ... इतना बड़का कहानी सुना दिये ... और बाल कटवाने के बाद ... चाँद का मुखड़ा और मुखड़े का चाँद दो मे से कुच्छो नाही दिखाये ... धत ... फोटो साटिए यहाँ एकदम ताज़ा वाला ...
शिवम भाई फ़ोटो कल साट देंगे ।
साला पहले मालूम होता तो कमेन्ट ही न करते ... हद है भाई साहब ... यहाँ भी उधारी ... का होगा इस देश का ...
अरे अभी सोते सोते का फ़ोटू आता, इसलिये कल तक के लिये उधार ही सही
अरे फोटू कहाँ है भाई साहब ... जे भी कोई बात भइ का ... हद है भई
आ मिसर जी लाईट लेके रस्तोगी जी का फ़ोटो तलास रहे हैं अब तकले
प्रवीण पांडे जी ने जैसे ही ..बिग बैंग के प्रश्न ….उछाले
मेरे ज्ञानी मित्र ,निःसंदेह ईश्वर ने..... पृथू का प्रश्न नैशर्गिक है ,कुतूहल वस नहीं जिज्ञासा वस ,और पृथु की जिज्ञासा हमारी सफलता है .....अलबर्ट आइन्सटीन साहब का शिखर प्रयास अबतक का उच्चतम प्रयास रहा है ......अभी तक हम अपनी उत्पत्ति का उद्दगम तलाश रहे हैं जितना पाए हैं संतुष्टि के लिए सवांश है ....बिग बैंग की थ्योरी प्रमाणिकता के आधार पर ही ग्राह्य होगी ......हमारी साधना ,हमारा मानस किस अवस्था में है कहना जल्दबाजी होगी ....../आदि गुरु नानक देव जी ने अपनी पवित्र वाणी में फरमाया है---
" पाताला पाताल लख,आगासा आगास....."
पृथु का यक्ष प्रश्न अनुत्तरित नहीं होगा ऐसा विश्वास है........../ वैज्ञानिक व्यावहारिक उन्नत आलेख ......बहुत -२ शुभकामनायें आपकी लेखनी व आप दोनों को...
विज्ञान का इस कहानी में विश्वास या अविश्वास उतना ही वैकल्पिक और काल्पनिक है जितना विभिन्न धर्मों द्वारा प्रस्तुत ईश्वर की अवधारणा में।
(1)'विज्ञान का इस कहानी में विश्वास या अविश्वास उतना ही वैकल्पिक और काल्पनिक है जितना विभिन्न धर्मों द्वारा प्रस्तुत ईश्वर की अवधारणा में।'
(3)पृथु पूछते हैं कि बिग बैंग किसने कराया, ईश्वर ने या विज्ञान ने?
(2)यदि आपकी गति प्रकाश की गति के समकक्ष है तो आपका एक वर्ष कम गति से चलने वाले के कई वर्षों के बराबर हो सकता है, अर्थात कम गति से चलने वाला अधिक गति से बूढ़ा होगा।
(1)एक के बारे में इतना ही बिग बेंग के पर्याप्त प्रमाण जुटाए जा चुके ,मसलन यह सृष्टि ३ केल्विन तापमान वाली दूधिया रोशनियों में नहाई हुई है .कोस्मिक बेक ग्राउंड रेडियेशन की मौजूदगी इसकी पुष्टि करती है .बिग बेंग विस्तार शील सृष्टि का समर्थन करता है प्रमाण अधिकाँश तारों की स्पेक्ट्रम पत्ती में रेखाओं का अधिक लाल होना है ,लाल की और खिसकाव है ,जिसे रेड शिफ्ट कहा जाता है .सृष्टि में व्यापक स्तर पर अन्धेरा है इसीस खिसकाव की वजह से दृश्य प्रकाश अदृश्य की और जा रहा है .
(२)प्रकाश की गति इख्तियार करने वाले यात्री के लिए समय का प्रवाह रुक जाएगा .वह जवान बना रहेगा .पृथ्वी पर तब तक कई पीढियां गुज़र चुकीं होंगी .
(३)बिग बेंग आवधिक घटना है स्वत :स्फूर्त .सृष्टि बनती है बिगडती है .ऊर्जा -द्रव्यमान ,मॉस -एनर्जी का द्वैत माया है एक तत्व की ही प्रधानता कहो इसे जड़ या चेतन .द्रव्यमान -ऊर्जा एक ही भौतिक राशि का नाम है अलबत्ता इसका परस्पर रूप बदलता रहता है .घनीभूत ऊर्जा द्रव्यमान यानी पदार्थ में तबदील हो जाती है विर्लिकृत ऊर्जा रूप में अदृश्य बनी रहती है .उसके प्रभाव ही दृष्टि गोचर होतें हैं .
आपकी इस शानदार पोस्ट के लिए बधाई .चर्चा जारी है .कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 5 मई 2012
चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग – १
सारा विज्ञान सापेक्षता के स्पर्श से आलोकित हो पा रहा है। सापेक्षता के परे भी कुछ होना चाहिये ...जो होना चाहिये वह सूक्ष्मतम की ओर संकेत करता है। सांख्य दर्शन से मार्गदर्शन मिल सकता है। फ़िलहाल यह स्वीकार करने में कोई हर्ज़ नहीं है कि "पूर्ण" से अपूर्ण की उत्पत्ति हुई है ..और अपूर्ण का अंतिम विलय "पूर्ण" में ही होता है। यह "पूर्ण" हमारे य़ूनीवर्स का वह सत्य है जो दिक, काल, ऊर्जा और पिण्ड का एकमात्र स्रोत है। पाण्डॆय जी! कई बार लगता हैकि विज्ञान के आंशिक सत्य से हम सम्मोहित हो गये हैं और पूर्ण सत्य के ज्ञान से वंचित हो रहे हैं। पृथु को सांख्य दर्शन के समीप ले जाने का प्रयास उसकी जिज्ञासा के समाधान का कारण हो सकता है।
तो चलिए आज के लिए इतना ही ….अब तो आपको यकीन हो गया न कि …यहां पोस्ट ही नहीं बंधु , टिप्पणियां भी पढी जाती हैं
जय हो मान्यवर जय हो आपकी ... खूब नज़र रखते है आप सब पर ... कौन कहाँ क्या कैसे और काहे बोल गया ... सब खबर है आपको ... जय हो महाराज ... मान गए आपको !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत थैंकू है हो मिसर जी
हटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - लीजिये पेश है एक फटफटिया ब्लॉग बुलेटिन
हटाएंnaari blog bhi haen waah
जवाब देंहटाएंthanks
आभार रचना जी
हटाएंवाह! क्या तेज दिमाग पाया है!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी चर्चा पुन: प्रारंभ करने के लिए शुभकामना, इसके बिना कुछ अधुरा सा लग रहा था ब्लॉग जगत्………… सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें।
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