पिछले कुछ समय में अक्सर अंतर्जालीय मित्रों के बीच एक बात बार बार उठी कि , हिंदी ब्लॉग जगत में पहले तो पाठकों की और अब टिप्पणी करने वाले पाठकों का रुझान कम हो रहा है । नहीं जानता कि ऐसा क्या सब महसूस कर रहे हैं । टिप्पणियों का आकर्षण और उनका अपना महत्व हमेशा से ही रहा है । इन टिप्पणियों को सहेज कर बटोर कर बीच बीच में पाठकों के सामने एक नए अंदाज़ से लाने के लिए ही टिप्पी पर टिप्पा लगाने की योजना बनाई थी । लगता है कि अब समय आ गया है कि इन्हें पुन: जीवित किया जाए । तो लीजीए आज से ही शुरू करते हैं । आज एक छोटी सी शुरूआत
कुछ अलग सा की इस पोस्ट पर :-
Pallavi ने कहा…
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आपकी बात सही है विज्ञापन बनाने वालों का तो फंडा ही यही है बस माल बिकना चाहिए किसी कि भावनाए आहात होती हैं तो होती रहें उनकी बला से ....हो सके तो इस विज्ञापन का लिंक लगाएँ देखने कि इच्छा है आभार.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
देशनामा की इस पोस्ट पर :-
- उफ़्……………आँख भर आई……………कुछ कहने को तो बचा हीनही……………सिवाय इसके माँ सिर्फ़ माँ होती है शायद ही कोई जान सकता है।
अनूप शुक्ल ने कहा…
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किराये की भी चिंता थी। मैदान, दरी, तम्बू, कनात सबका तो चंदा देना होता न!
अंतर्मंथन की इस पोस्ट पर :-
Khushdeep Sehgal said...
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कहते हैं बुढ़ापे का इश्क भी गजब होता है...ऐसा ही गजब ढाया हमारे एक नवाब साहब ने...टीवी पर जिस तरह के सीरियल आजकल आते हैं...आप सब जानते हैं...सब घर वालों का साथ बैठकर इन्हें देखना मुश्किल होता है...नवाब साहब और बेगम घर पर अकेले थे...ऐसे ही एक रोमांटिक सीरियल पर नवाब साहब की नज़र पड़ गई...नवाब साहब को अपना गुजरा जमाना याद आ गया...नवाब साहब ने हिम्मत करके झट से बेगम को किस कर लिया...
किस के बाद बेगम ने नवाब साहब से पूछा...क्या बबलगम खाई थी...
नवाब साहब ने कहा...बबलगम तो थी...बस बबलगम का पहला 'ब' उड़ा दो...
चिट्ठाचर्चा की इस पोस्ट पर :-
अब बेपटरी न हो!
हुंकार की इस पोस्ट पर :-
हा हा हा लिट्टीबाज अय्याश निकले आप तो हो । बाबूजी , मां और दादी तक का करेजा जरा के खाक कर दिए । लेकिन एतना से क्या होगा , अरे बियाह करिए बियाह । चईन पर जब चूडा कुटाएगा न त लिट्टी त लिट्टी चोखा भी आउर चोखा लगेगा । फ़ोटो देख के मन हुलस गया हो । दबा के खाए न
मैं घुमन्तु की इस पोस्ट पर :-
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हे भगवान लहरें के बाद यहाँ भी! येट टू ब्रूटस:)
कल्पतरू की इस पोस्ट पर :- -
हे भगवान लहरें के बाद यहाँ भी! येट टू ब्रूटस:)
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इसीलिये कहता हूँ कि ट्रायल और इरर सबसे अच्छा "गुरु" होता है !
आपके अंदर के 'गुरुत्व' को सलाम !
मेरी भावनाएं की इस पोस्ट पर :-
Suman ने कहा…
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नव वर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें !
सार्थक सन्देश देती रचना ....
अक्सर यह मन संकल्प तोड़ने में बड़ा माहिर है !
संकल्प नहीं समझ चाहिए बस !
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आपका प्रयास अच्छा है, इसे जारी रखें। खुशदीपजी की टिप्पणी से कल सारा दिन उल्टी का सा मन बना रहा और आज फिर आपने चिपका दी। इतनी खतरनाक टिप्पणियों से भगवान बचाए। पता नहीं उन्हें भी कहाँ कहाँ से सूझता है?
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