तुम्हारे लेखों में जिस frequency से ‘वरुण’ नाम के इस लड़के का
ज़िक्र आता है उससे ज्यादातर लोग यही मानेंगे कि वो तुम्हारा बनाया हुआ कोई
‘fictional character’ है जिसके साथ हो रही घटनाओं का सहारा लेकर तुम अपनी
theory रखते हो.
और ‘Ides of March’ मुझे तो लगा शुरू होने से पहले ही खतम हो गयी. मेरे
लिए पूरी फिल्म ‘फूल और काँटे’ के अजय देवगन की मोटरसाइकल एंट्री वाले सीन
के बराबर ही थी जहाँ बस यही establish किया गया कि “देख लो भई…अपना हीरो
कितना बवाल है.” उसके बाद ये बवाल आदमी क्या करेगा ये तो दिखाया ही नहीं.
बाप रे कहाँ कहाँ नज़र रखते है आप ... जिस ब्लॉग पर मैंने अपनी टिप्पणी दी है वो ब्लॉग एक बेहद लो प्रोफाइल ब्लॉग है हलाकि उस ब्लॉग के साथ काफी चर्चित ब्लॉगर जुड़े हुए है फिर भी वो ब्लॉग अपने एक सिमित पाठको तक ही केन्द्रित है ... पर आपने वहाँ भी अपनी तेज़ नज़रें जमा रखी है ... मान गए साहब !
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है. नया आइडिया है.
जवाब देंहटाएंशिवम भाई ,
जवाब देंहटाएंइस अंतर्जाल पर हम एक पकिया खानाबदोश हैं , जाने कहां कब विचर जाएं । सिंह सदन से हम बहुत पहले से परिचित हैं ।
काजल भाई ,
व्हाट एन आइडिया सर जी , शुक्रिया सर जी ।
निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.
जवाब देंहटाएंनववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर