रविवार, 21 मार्च 2010

टिप्पणी टुक टुक : जस्ट हैव एक लुक (टिप्पणी चर्चा )

ओह बहुते अफ़सोस की बात है जी आजकल सब लोग टिप्पी करना कम कर दिए हैं जी ...और दूसरों का क्या कहें जब हम ही खुद बहुते एबसेंटी चल रहे हैं । जो रहे सहे बचे हुए हैं ..ऊ सब दे धनाधन ...इश्वर लडा रहे हैं ....सारा ताकत तो उसी में खर्च हुआ जा रहा है ....तो का होगा ।खैर हम भी बहुत घुसेडू बिलागर हैं .....लीजीए झेला जाए ............

घघुती बासुती जी के ब्लोग पर
श्री ज्ञानदत्त पांडे जी ने कहा…
यदि स्त्री शक्तिशाली बनें,ऊँचे पदों पर बैठें तो देखिए लहजा, भाषा सब बदल जाएँगे, कम से कम स्त्री के सामने तो।---------अपने बचपन से सुन रहा हूं। चौव्वन साल का हो गया। बदलाव है, पर उतना नहीं। :(
टिप्पा: का पांडे जी बचपने से कित्ता देख सुन रहे हैं ..ऊ भी कईसन कईसन सच्ची मुच्ची काबात चीत । खुद हमरी बुद्धिदानी में भी ई बात नहीं घुस रहा है कि ....राष्ट्पति , कांग्रेस अध्यक्षा , मुख्यमंत्री , करोडमाला पहनने वाली मालावती, और जाने कौन कौन शक्शिक्तिशाली पद पर तो बैठिये गई हैं महिलाएं ....फ़िर भी किरन बेदी को ......अपनी कचहरी अलग से लगानी पडती है. ......।आप चौव्वन के हो गए हैं .....तब जाके इता काम हुआ है बकिया work in in progress .....
देशनामा पर पोस्टों की डबल सेंचुरी पर

Udan Tashtari said...

वाह!! डबल सेन्चुरी--फटाफट. आनन्द आ गया. बहुत बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ.यहाँ जो सम्मान तुमने दिया है, सीना चौड़ा हो गया.बस, लिखते चलो. जल्द ही हजार पार करना है न!!
March 21, 2010 4:40 AM

बी एस पाबला said...

बधाई जी बधाई!इस बार लगता है वाकई बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं। हमारा ध्यान तो बार बार उस लाईन की ओर जा रहा है, जहाँ आप लिख आए हैं कि पोस्ट की डबल सेंचुरी है तो कुछ बढ़िया कॉकटेल तो बनता है न बॉस...
टिप्पा :- लो कल्लो बात ...उडन जी आप पहिले से ही कोई कम चौडा हैं जो ...अब जाके सीना चौडा हुआ है ....कुछ लंबाई चौडाई भी तनिक बता देते तो हम अपना फ़्लैट बना लें ओईसे हमें ई तो पता है कि हमरे लिए एक ठो कोठरिया उहां पहले ही बना हुआ है । पाबला जी , एकदम अर्जुन वाला तीर मारा है आपने डायरेक्ट मछली की आख में ........बधाई शधई सब बाद की बात है ..

अदा जी पोस्ट पर आलसपन छोडते हुए

गिरिजेश राव said...

@ उनसे पूछो कि क्या आपको पता है आपकी पत्नी क्या चाहती है, या बेटा अथवा माँ-बाप क्या चाहते हैं, तो जवाब देना उनके लिए बहुत ही कठिन होगा...लेकिन कितनी आसानी से यही लोग यह बता देंगे कि ईश्वर या अल्लाह क्या चाहता है ..शमाँ तले अन्धेरा :) अन्धे के घर बिजली :)@मूर्खता की पराकाष्ठ शायद इसे ही कहते हैं....प्रेम करनेवाला ईश्वर है, लेकिन उसको उसकी सीमा बताने, और बाँधने वाला मनुष्य ...क्या बात है...!!!तमाम किताबात को पढ़ने के बाद माबदौलत इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि प्रेम करने वाली किसी आसमानी हुक़ूमत के वजूद को मानना सबसे अहमकाना बात है। इससे तौबा की जानी चाहिए। उसके मुकाबले इश्को मुहब्बत के लिए दुनियावी शख्स या कि जानवर भी मुफीद हैं। @ सभी अपने-अपने प्रभु से अपना व्यक्तिगत रिश्ता रखें, कोई भी इस मामले में हस्तक्षेप न करे, ठीक वैसे ही जैसे कि किसकी रसोई में क्या पक रहा है न किसी को इससे कोई सरोकार होना चाहिए न ही मतलब...ऊ जो कितबवा में लिक्खा है कि बन्दों को बढ़ाओ चाहे जैसे, उसका क्या होगा? ठेका मिला हुआ है और आप कहती हैं कि टेकेदारी बन्द करो। पेट पर लात ! नहीं चलेगा। हाय हाय, ऐसी गुस्ताखी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी नहीं चलेगी।
हमारा टिप्पा :- अब ई ठहरे लंठ इनका टीप पर टिप्पा बैठाने से तो बढिया है कि चार ठो अलग से पोस्ट लिख दिया जाए । और ई का जी आप तो भोरे से कह थे कि आज आलस है मन नहीं न कर रहा है कुछो लिखने का इसलिए कुछो लिख दे रहे हैं । एतना बडका बडका टीप मारियेगा तो पोस्ट के लिए अईसन टाईप का ही फ़ीलींग होगा न ॥
गोदियाल जी के अंधड पर

डॉ टी एस दराल said...

आजकल तो कुत्तों के ही ज्यादा ठाठ बाठ हैं।गोदियाल जी , ये कौन सा बनवास काटकर लौटे हैं।खैर टिपण्णी खोलने का बहुत शुक्रिया।
टिप्पा:- हें हें हें ........का कह रहे हैं डा. साहब । कुकुर लोग का ठाट बाट ...नहीं नहीं आप इंसान के भीतर छुपे जानवर की बात कर रहे हैं न ......और फ़िर इस जानवर के भीतर ...यानि हर कुत्ते के अंदर एक इंसान होता है ....और वैसे ही कुछ इंसानों के अंदर भी कुत्ते होते हैं .....उफ़्फ़ ई कौन थ्योरी है यात हम तो खुद ही उलझ गए .। आज समझ में आया डाकटरी पढना उतना आसान नहीं है जित्ता हम समझ रहे थे । गोदियाल जी एकदम जमा जमा के टिप्पी बक्सा खोल रहे हैं । हम सोच रहे हैं कि यदि ऐसा ही सबने करना शुरू किया तो फ़िर हम टिप्पा काहे पर लगाएंगे जी ???
सवाल आपका है की इस पोस्ट पर
काजल कुमार Kajal Kumar ने कहा…
नक्शे का रूट से कोई लेना देना नहीं है...नाहक चैनलिए इसे मुद्दा बनाए बैठे हैं और रेवले के बाबू हैं कि टी0 वी0 चैनल का नाम सुनते ही सफाइयां देते घूमने लगते हैं. काहे नहीं इन जोकरों से पूछते कि क्या बाक़ी शहर भी नक्शे में वहीं हैं (?) जहां वो दिखाई दे रहे हैं...फिर एक ही शहर की बात क्यों ?
टिप्पा :- काजल भाई एकदम ठीक कह रहे हैं ..नक्शे का रूट से कोई लेना देना नहीं है। इसी सूत्र वाक्य को मन में बैठा लें तो आज तक हुए रेल हादसे , बस दुर्घटना के लिए सारा जस्टीफ़िकेशन मिल जाएगा । जोकरों से जो पूछने को जो कह रहे हैं वो जरूर पूछा जाए ...काहे से कि जब से सर्कस पर बैन लगा है बेचारे जोकर सब भी नहीं मिल पा रहे हैं ।
डा दराल के अंतर्मंथन पर

JC said...

डा. दराल साहिब ~ बात तो आपने सौ फीसदी सही कही...सरदार खुशवंत सिंह ने भी कभी एक लेख में लिखा था कि हम अब अपने ऊपर हँसना भूल गए हैं,,,और अब तो कार्टून, जो पहले 'मनोरंजन' का एक साधन माना जाया करता था, उसके ऊपर भी विवाद छिड़ जाते हैं...आदि आदि...'हम हिन्दुस्तानी' कभी अपनी सहनशीलता के लिए प्रसिद्द थे,,,किन्तु आज तो किसी से मजाक में भी बोलने में डर लगता है, क्यूंकि मालूम नहीं कब कोई पेट्रोल के समान भड़क उठे - 'रोड रेज' कि खबरें समाचार पत्रों में पढने को मिलती रहती हैं :) हम तो भाई अपनी मूर्खता पर ही अकेले-अकेले हंस लेते हैं - और 'उसको' कभी-कभी कह लेते हैं. "बता, चालाक से चालाक को मूर्ख बनाने में, तेरी मर्जी क्या है" ? क्यूंकि सर्वगुण संपन्न शायद वो ही हमेशा अकेला ही खुल के हंस पाता होगा हमारी सब की मूर्खता पर :)
टिप्पा :- जे सी ...नाम इतना शौर्ट हैंड में लिखते हैं मुदा टिप्पी में केतना गहरा बात कह देते हैं । अब ई पर का टिप्पा फ़िट करें जब आप बाते एकदम सौ प्रतिशत सही कह दिए हैं । हां उसको का राज खुलासा करने के लिए टीम भिड गई है जल्दी ही पूरी बात पता करके बताया जाएगा । उ भी हंसता रोता है ..ई बात मार्के की कही आपने ।

लंठ जी की कविता कवि भी की पोस्ट पर

शरद कोकास ने कहा…

जैसे खेल रहे हों बच्चे/आँखमिचौनी गरीब के .. राव साहब इस बिम्ब पर मैं कुर्बान जाऊँ ...।

टिप्पा :- शरद भाई ....खुद को संभाल के रखिए ई राव साहब तो कातिल हैं एकदम घातक टाईप के इनका गद्य से बचे त्प पद्य पर जान जाना एकदम पक्का है .....इसलिए कुर्बान होने को तैयार ही रहना पडता है । हम तो रोजे मरते हैं ...फ़िर रोजे भूत बनके इनको पढने के विचरते हैं ।

भाई काजल कुमार जी ने पाकिस्तानियों को गौरिया दिवस मनाते पकडा तो

ताऊ रामपुरिया, March 21, 2010 7:58 AM
अबे बेवकूफ़ ठोक मत...इसको जेल में डाल दे... इसके बदले ५० लोग अपने छुडवाने के काम आयेगी.
रामराम.

टिप्पा:- हा हा हा ..सही कहा ताऊ अब तो हमारी गोरैया ..हमारे टाईगर भी इनके बंदे छुडाने के काम आ सकते हैं । मगर मुश्किल ये है कि कम्बख्त मिलें तब न ....१४११ चलाने के बाद तो टाईगर सब सुने हैं कि अपना ऐटेंडेंस डेली मार्क करवा रहा है ....गोरैय्या सब के लिए भी एक ठो रजिस्टर बना लिया जाए ......और एक ठो गोरैय्या पर एक ठो कसाब ..एक ठो दूसरा गोरैय्या पर ..एक ठो अजमल फ़्री का स्कीम जल्दी ही भारत सरकार चलाने जा रही है ।

गिरिजेश जी की आलस पर

Aashu ने कहा…

टिप्पणी पर आपने कुछ सवाल उठाये हैं. एक सोच हमारी भी. कई सारे ब्लॉग पढता हूँ, कुछ लिखता भी हूँ. टिप्पणियां भी पढता हूँ. ज्यादातर ब्लॉग के टिप्पणी में देखता हूँ कि लोग बस 'सुन्दर', 'अच्छा' या 'nice' कह कर निकल लेते हैं. ब्लॉग के विषय पर, उसमे उठाये गए मुद्दे पर अपनी भावनाएं लोग कम ही लिखते हैं. क्या ये नहीं होना चाहिए कि लेखनी की तारीफ़ से ज्यादा उस लेखनी पर चर्चा हो टिप्पणियों के माध्यम से.
खैर, रविवार की सुबह की तो बात ही कुछ और है. आज आँखों ने खुलने से ही इनकार कर दिया. 7 बजे से अभी तक ढेरों प्रयत्न कर चूका था. अब जब पिताजी की झाड पड़ी है तभी उठ सका हूँ. :)
अंशुमान, http://draashu.blogspot.com
टिप्पा: - आशु जी पहले तो ई क्लियर किया जाए कि पिताजी की डांट से इंस्पायर होके आप काहे के लिए सबको इत्ता सीधा सीधा सपाट टिप्पी क्लास ले लिए ? और हां ज्यादातर लोग एक शब्द से काम चला रहे हैं ..तो किया का जाए ..और काम नहीं है का ...फ़िर सबसे अधिक टिप्पणियों में तो स्माईली भी काऊंट होता है जी । हां जईसन टाईप का शास्त्रार्थ आप ढूंढ रहे हैं न टिप्पणी -प्रतिटिप्पणी और पोस्ट के बीच वाला उ तो आजकल बस एक खास टाईप के पोस्ट पर ही देखने को खूब मिल रहे हैं ॥

अलबेला खत्री जी की पोस्ट पर

मयंक March 21, 2010 11:06 AM
बेनामी कमेंट से है, ब्लॉगजगत हैरानखुद तो हैं ही, करते हैं सबको ही परेशानकरते हैं परेशान, दुखी पर खुद ही होएंरात रात भर कुढ़न के मारे न ये सोएंबेनामी से कभी न डरना, ब्लॉग के स्वामीसारे कायर लोग लिखें, नाम बेनामीबाकी खत्री जी तारीख दे ही दी है...वक्त और जगह भी जल्द ही बता दें....हम तो खैर खाली हैं चले ही आएंगे....मयंक सक्सेना

 

टिप्पा : - का मयंक भाई ..जब लोग बेनामी सबको टोकरिया भरभर के गरिया रहा है ...ससुर बेनामी सब भी खाली गरिया ही रहा है ..ऐसे में आप इतना सुंदर श्रद्धांजलि दे रहे हैं उनको ऊ भी काव्यात्मक टाईप ...बताईये फ़िर भला ..बेचारा काहे के लिए मां बाप का दिया रखा नाम उपयोग करेगा ..आखिर लावारिसाने का भी कोई लुत्फ़ होता है कि नहीं ???

ललित जी को जन्मदिन की बधाई देते हुए हम खुदे टीप मारे हैं :-

अजय कुमार झा,
वाह आज तो बल्ले बल्ले ..ललित जी को उनके मूंछों के जन्मदिवस की बहुत बहुत बधाई ..जी हां ये सच है ..हमारी खास रिसर्च टीम ने पता लगाया है कि ..इत्ती बडी मूंछों का असली राज यही है कि ये उन्हें बचपन में ही प्राप्त हो गई थी ...इसलिए ललित जी को और उनकी मूंछों को भी बधाई .. अजय कुमार झा