शनिवार, 31 दिसंबर 2011

टिप्पणियां आपकी , आपके लिए

जी हां , आइए इसे प्रोत्साहित करें
जैसा कि कल की पोस्ट पर मैंने कहा था कि , अब इस मंच से हमारा प्रयास होगा कि ब्लॉगजगत में की जा रही टिप्पणियों को सहेज़ कर हम आपके लिए लेकर आएंगे ताकि टिप्पणियों का खोता आकर्षण और पोस्टों में टिप्पणियों को प्रोत्साहन मिल सके । आज की कुछ टिप्पणियां ये रहीं :-

धान के देश में की इस पोस्ट पर :-

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...
उगते सूरज को सभी सलाम करते हैं

दफ़्‌अतन  की इस पोस्ट पर


इमरान अंसारी said...

आपने कुछ कहने लायक छोड़ा ही नहीं है.........बस हैट्स ऑफ कर सकता हूँ आपको.........आपकी भाषा और पोस्ट की रवानगी......इसमें छिपी अग्नि की ललक.........सुभानाल्लाह |



निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...
बहुत मजाकिया. क्या आपको बरसों पहले दूरदर्शन पर आनेवाली डीडी'ज कॉमेडी शो की याद है?




varun says:
तुम्हारे लेखों में जिस frequency से ‘वरुण’ नाम के इस लड़के का ज़िक्र आता है उससे ज्यादातर लोग यही मानेंगे कि वो तुम्हारा बनाया हुआ कोई ‘fictional character’ है जिसके साथ हो रही घटनाओं का सहारा लेकर तुम अपनी theory रखते हो. :)
और ‘Ides of March’ मुझे तो लगा शुरू होने से पहले ही खतम हो गयी. मेरे लिए पूरी फिल्म ‘फूल और काँटे’ के अजय देवगन की मोटरसाइकल एंट्री वाले सीन के बराबर ही थी जहाँ बस यही establish किया गया कि “देख लो भई…अपना हीरो कितना बवाल है.” उसके बाद ये बवाल आदमी क्या करेगा ये तो दिखाया ही नहीं.





शिवम् मिश्रा said...
श्यामू भाई ... इन सब फोटो का तो बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था सब को ... बहुत बहुत आभार इनको साँझा करने के लिए !

आपको सपरिवार नव वर्ष २०१२ की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !


चिट्ठाचर्चा की इस पोस्ट पर :-



वाह क्या स्टाईल है चिट्ठाचर्चा का साल बीतते बीतते …..नए साल पर नयी नयी ऐसी ही स्टायिलें सूझें ….चिट्ठाचर्चा और चिट्ठाचर्चाकारों को बहुत बहुत शुभकामनाएं!





Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...
आपके आलेख के किसी भी बिन्दु से असहमत होने का प्रश्न ही नहीं उठता। भ्रष्ट शक्तिशाली अधिकारी अपने आधिकारिक बल के द्वारा अपने स्वार्थ को हर प्रकार के व्यक्ति पर थोपता है। गिने-चुने लोग ऐसे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग भी लड़ते हैं परंतु अलग-थलग पड़ जाते हैं। कुछ लोग मजबूरी में भ्रष्टाचार को हवा देते हैं जबकि अपराधी प्रवृत्ति के लोग ऐसी बुराइयों के साथ मिलकर फ़ायदा उठाते हैं। दुख यह है कि कई बार ईमानदार लोग भी अज्ञानवश ऐसे लोगों के भ्रष्ट अचीवमेंट्स का विरोध करने के बजाय बधाई देने और उनकी हार पर मानवतावश सहानुभूति करने पहुँच जाते हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई तभी लड़ी जा सकती है जब सज्जन वर्ग न केवल सशक्त और संगठित हो वह यह भी पहचाने कि अपने फ़ायदे के लिये ईमानदारी का राग अलापने वाला हर व्यक्ति भी ईमानदार नहीं होता। बहुत सुन्दर आलेख। आपके मन की व्यथा लाखों ईमानदारों की व्यथा है।



Dr.J.P.Tiwari ने कहा…
यह राष्ट्र हमारा
अमर रहे.
गणतंत्र रहे,
स्वतंत्र रहे...
यही एक
अपेक्षा अपनी,
आनेवाले इस
नए वर्ष से.
अपने प्यारे देश,
भारत वर्ष से.
परन्तु कभी न
स्व' का 'तंत्र' रहे.
हाँ! कभी न
स्व' का 'तंत्र' बने.



Rahul Singh said...
एक साथ पढ़ कर तो ओवरडोज जैसा ही लगा अब, जारी रहे यह सफर.

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

आइए टिप्पणियां पढें




पिछले कुछ समय में अक्सर अंतर्जालीय मित्रों के बीच एक बात बार बार उठी कि , हिंदी ब्लॉग जगत में पहले तो पाठकों की और अब टिप्पणी करने वाले पाठकों का रुझान कम हो रहा है । नहीं जानता कि ऐसा क्या सब महसूस कर रहे हैं । टिप्पणियों का आकर्षण और उनका अपना महत्व हमेशा से ही रहा है । इन टिप्पणियों को सहेज कर बटोर कर बीच बीच में पाठकों के सामने एक नए अंदाज़ से लाने के लिए ही टिप्पी पर टिप्पा लगाने की योजना बनाई थी । लगता है कि अब समय आ गया है कि इन्हें पुन: जीवित किया जाए । तो लीजीए आज से ही शुरू करते हैं । आज एक छोटी सी शुरूआत






कुछ अलग सा की इस पोस्ट पर :-

Pallavi ने कहा…
आपकी बात सही है विज्ञापन बनाने वालों का तो फंडा ही यही है बस माल बिकना चाहिए किसी कि भावनाए आहात होती हैं तो होती रहें उनकी बला से ....हो सके तो इस विज्ञापन का लिंक लगाएँ देखने कि इच्छा है आभार.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है 

देशनामा की इस पोस्ट पर :-

वन्दना said...
उफ़्……………आँख भर आई……………कुछ कहने को तो बचा हीनही……………सिवाय इसके माँ सिर्फ़ माँ होती है शायद ही कोई जान सकता है।


अनूप शुक्ल ने कहा…
किराये की भी चिंता थी। मैदान, दरी, तम्बू, कनात सबका तो चंदा देना होता न!


अंतर्मंथन की इस पोस्ट पर :-


Khushdeep Sehgal said...
कहते हैं बुढ़ापे का इश्क भी गजब होता है...ऐसा ही गजब ढाया हमारे एक नवाब साहब ने...टीवी पर जिस तरह के सीरियल आजकल आते हैं...आप सब जानते हैं...सब घर वालों का साथ बैठकर इन्हें देखना मुश्किल होता है...नवाब साहब और बेगम घर पर अकेले थे...ऐसे ही एक रोमांटिक सीरियल पर नवाब साहब की नज़र पड़ गई...नवाब साहब को अपना गुजरा जमाना याद आ गया...नवाब साहब ने हिम्मत करके झट से बेगम को किस कर लिया...

किस के बाद बेगम ने नवाब साहब से पूछा...क्या बबलगम खाई थी...

नवाब साहब ने कहा...बबलगम तो थी...बस बबलगम का पहला 'ब' उड़ा दो... 



 चिट्ठाचर्चा की इस पोस्ट पर :-


चिठ्ठाचर्चा अब अपना धर्म सही तरीके से निभाने लगा है। नये लोगों की चर्चा महत्वपूर्ण अंग है धर्म का।
अब बेपटरी न हो! :-)


शुक्रिया! वैसे पटरी-बेपटरी होना भी चिट्ठाचर्चा के सहज-स्वभाव में है। देखिये आगे आपकी मंशा कैसे पूरी कर पाते हैं। :)


हुंकार की इस पोस्ट पर :-



हा हा हा लिट्टीबाज अय्याश निकले आप तो हो । बाबूजी , मां और दादी तक का करेजा जरा के खाक कर दिए । लेकिन एतना से क्या होगा , अरे बियाह करिए बियाह । चईन पर जब चूडा कुटाएगा न त लिट्टी त लिट्टी चोखा भी आउर चोखा लगेगा । फ़ोटो देख के मन हुलस गया हो । दबा के खाए न




मैं घुमन्तु की इस पोस्ट पर :-

Arvind Mishra said...
हे भगवान लहरें के बाद यहाँ भी! येट टू ब्रूटस:)


कल्पतरू की इस पोस्ट पर :-


Praveen Trivedi said...
इसीलिये कहता हूँ कि ट्रायल और इरर सबसे अच्छा "गुरु" होता है !


आपके अंदर के 'गुरुत्व' को सलाम !


मेरी भावनाएं की इस पोस्ट पर :-

Suman ने कहा…
नव वर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें !
सार्थक सन्देश देती रचना ....
अक्सर यह मन संकल्प तोड़ने में बड़ा माहिर है !
संकल्प नहीं समझ चाहिए बस !